कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
bahut hi behtareen rachna.. hamesha ki tarah padhkar achha laga...yun hi likhte rahein...... ---------------------------------------- mere blog par is baar इंतज़ार... jaroor aayein... http://i555.blogspot.com/
बहुत ख़ूब...अपने अंदाज़ में कहूँ तो - . कुछ नहीं छोड़ा है देखो आपने! ग़म कि गलियाँ और भटकता ख़ाली मन. ख़्वाहिशों के पेड़ और चाहत के झड़ते सब्ज़ों के संग आपने क्या ख़ूब देखो है बिखेरा आँधियों मे जो हक़ीक़त है हरेक इंसान की लेकिन जो चाहत है बिखरती चारों सू संगीता जी!! ये सोचकर तो देखिये वो पार कर ईमामबाड़े के सभी छोटे बड़े से पेंचोख़म बिखरी है ख़ुश्बू की तरह रंग़ीं फ़िज़ाँ में.
मुझे हैरानी हुई जान कर की भटका हुआ मन ख़वाहिशो के दरख़्त के नीचे ही जाकर क्यों बैठा???? :):) और अगर चाहतो के पत्ते उड़ रहे थे तो भगवान् ने एक अदद झोली दी है न (नरम नरम गोद) उसमे संजो लेते और कुछ खूबसूरत हकीकतो से ही मिलवा देते. हा.हा.हा. किन्तु, परन्तु आपकी ये रचना मेरी झोली में घुसी चली जा रही है और पता है दिल कर रहा है कि मै इस रचना को कोई और दिशा दे दू.....बहुत अच्छी रचना. बधाई.
aapki chhoti chhoti rachnayen!! gahri chhap chhodti hai........hamare mann par!! aap jaiso se hi ham seekhne ki koshish karte hain...........ab kya bolen!! umda rachna to hai hi!!
aapne mere naye post pe click nahi kiya........plz come there www.jindagikeerahen.blogspot.com
33 comments:
Imambaade kee bhoolbhulaiyya!
Khwahishon ke darakht!
Chahton ke patte!
Haqeeqat kee aandhi!
Kya kahoon?
Saadar charan sparsh!
हमेशा की तरह एक सुन्दर सी कविता पढ़ने को मिली ! आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी मन को छूं गयी !
har baar ki tarah shandar...imaambade se ghar ki yaad a gayi
बढिया लिखा आपने .. सुदर भावाभिव्यक्ति !!
हर बार की तरह ....बहुत सुंदर कविता...
कभी कभार दिशाहीन उड़ने का भी तो जी चाहता है, पर स्वेच्छा से.
सुन्दर रचना
bahut hi behtareen rachna..
hamesha ki tarah padhkar achha laga...yun hi likhte rahein......
----------------------------------------
mere blog par is baar
इंतज़ार...
jaroor aayein...
http://i555.blogspot.com/
बहुत ही खूबसूरत नज्म. शुभकामनाएं.
रामराम.
सुन्दर भावपूर्ण कविता।
बहुत ही गहन अभिव्यक्ति, आपका लेखन तो हमेशा ही काबिले तारीफ़ होता है, आपकी अगली पोस्ट के इंतज़ार में......
हकीकत की आंधी, ऐसी ही होती है..सारे ख़्वाब कहाँ उड़ा ले जाती है...पता भी नहीं चलता.......सुन्दर नज़्म
Yah haqeeqat kee aandhiyan, sach, na jane apne saath kya,kya uda le gayin...
solid hai mumma...dher sare metaphors hain ...mastam mastam nazmam ... :)
बहुत बढिया रचना!!!
बहुत ख़ूब...अपने अंदाज़ में कहूँ तो -
.
कुछ नहीं छोड़ा है देखो आपने!
ग़म कि गलियाँ और भटकता ख़ाली मन.
ख़्वाहिशों के पेड़ और चाहत के झड़ते सब्ज़ों के संग
आपने क्या ख़ूब देखो है बिखेरा आँधियों मे
जो हक़ीक़त है हरेक इंसान की
लेकिन जो चाहत है बिखरती चारों सू
संगीता जी!!
ये सोचकर तो देखिये
वो पार कर ईमामबाड़े के सभी छोटे बड़े से पेंचोख़म
बिखरी है ख़ुश्बू की तरह रंग़ीं फ़िज़ाँ में.
bahut sunder abhivyakti........
sadaiv kee bhati.....
इमामबाड़े की तरह भटका मन....बहुत कुछ कह गया है
एक सुंदर भाव समेटे उम्दा रचना...प्रस्तुति के लिए आभार
बेहद सटीक अभिव्यिक्ति।
हकीकत की आंधी हमेशा ऐसे ही गुल खिलाती है......
सुन्दर रचना......
Hi..
Hamesha ki tarah bhavpurn kavita..
Aur shabdon ka chunav aur tulna.. Kya kahne..
DEEPAK..
वाह !!!!!!!!! क्या बात है अच्छी है ये अभिव्यक्ति.
मुझे हैरानी हुई जान कर की भटका हुआ मन ख़वाहिशो के दरख़्त के नीचे ही जाकर क्यों बैठा???? :):)
और अगर चाहतो के पत्ते उड़ रहे थे तो भगवान् ने एक अदद झोली दी है न (नरम नरम गोद) उसमे संजो लेते और कुछ खूबसूरत हकीकतो से ही मिलवा देते.
हा.हा.हा.
किन्तु, परन्तु आपकी ये रचना मेरी झोली में घुसी चली जा रही है और पता है दिल कर रहा है कि मै इस रचना को कोई और दिशा दे दू.....बहुत अच्छी रचना. बधाई.
वाह क्या बात है! सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार नज़्म! बधाई!
बहुत सुन्दर शब्दों में पिरोया..खूबसूरत भावाभिव्यक्ति...बेहतरीन प्रस्तुति !
सुन्दर....!!
u have written so beautifully..
जय श्री कृष्ण...अति सुन्दर...इंतजार ...बहुत खूब....बड़े खुबसूरत तरीके से भावों को पिरोया हैं...| हमारी और से बधाई स्वीकार करें..
जब हकीकत की आंधी चलती है तो चाहतों के पत्ते झरने लगते हैं।
--वाह! क्या बात है।
aapki chhoti chhoti rachnayen!! gahri chhap chhodti hai........hamare mann par!! aap jaiso se hi ham seekhne ki koshish karte hain...........ab kya bolen!! umda rachna to hai hi!!
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अच्छी रचना .... खूब लिखा है !!!
ye udaas galiyaan........fir se padhi
utni hi achchhi :)
bahut bahut khubsurat
उड़ते जा रहे हैं
निरंतर दिशाहीन से
हकीक़त की आंधी के साथ
किस गहराई से लिखती है आप ..सागर मंथन के बाद निकले हुए रत्नों की तरह
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