कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
मन के सागर को सोचों का साहिल तो मिला.. यादों की रेत पर मिले ख्यालों के निशान भी बेशक मिटा दिए हों हकीकत की लहर ने कल्पनाओं के निशा...मगर ये क्या कम था कि.. उस कल्पनाओं के सागर में डूबे तो सही..
बस ऐसे ही आपकी रचना को पढ़ कर कुछ शब्दों ने उथल -पुथल की...
इसमें कोई शक नहीं कि आप जो भी लिखती हैं मन का मंथन करके भावनाओं का अमृत ही होता है...और अमृत किसे नहीं अच्छा लगेगा... बधाई सुंदर रचना के लिए.
सम्वेदना के स्वर has left a new comment on your post "ख्यालों के निशाँ":
मरुभूमि में मरीचिका सी ये चाहत दौड़ाती है, पर हक़ीक़त में कुछ नहीं मिलता... वैसे ही साहिल पर रेत पर क़दमों के निशानों पर रखी चाहत, लहरों की भेंट चढ़ जाती हैं... एक इत्मिनान फिर भी होता है कि चलो इसी बहाने कुछ ऐसी चाहतें भी बह गईं जिनका बह जाना ही बेहतर था... ठोस चाहतें डट कर लहरों का सामना करती हैं और हक़ीक़त से टकराकर समाप्त नहीं होतीं, ख़ुद हक़ीक़त बनती हैं.. संगीता दी, प्रकृति के प्रतीकों से सजी अचिंत्य रचना!!
गलती से यह कमेन्ट डिलीट हो गया था...क्षमा प्रार्थी हूँ
आपकी रचनाएं मरुभूमि में मरुद्यान जैसी होती हैं... प्रकृति के प्रतीकों का बिम्बों के रूप में प्रयोग चमत्कृत करता है... हर बार यहाँ आकार तारोताजा हो जाती हूँ.
हम त दंग रह जाते हैं आपका छोटा छोटा प्रतीक देखकर... समुंदर, साहिल, लहर, रेत, पैरों का निशान, चाहत... हर सब्द अपने आप में कविता है अऊर जब आप इसको गूँथ देती हैं तब जाकर ई माला बन जाता है...आज समझ में आया है कि आपका ब्लॉग का नाम बिखरे मोती काहे है... आदमी के चाहत का बहुत सुंदर दर्सन प्रस्तुत की हैं आप, हमेसा चाहत बालू पर बना हुआ निसान के पीछे भागता है, लेकिन सचाई का लहर के साथ सब बह जाता है. बहुत सुंदर!!
वाह.. संगीता जी रेत पर ख्यालों की निशानदेही. मुझसे लगता है पानी निशानदेही से गले मिलने आता है.गले मिलने वाला इतना खूबसूरत होता है कि उसे साथ ले जाता है. आपकी कविता मेरे लिए कुछ न कुछ काम छोड़ जाती है. फिर से कुछ सोचने लगा हूं कभी-कभी यह भी सोचता हूं कि मैं इतना अच्छा कब लिख पाऊंगा
ab samjh me hi nahi aata mumma ki comment kya kiya jaye ..heheh...aap humesha achha likhti hain ..bade makhmali prateekon ka istemal kiya hai aapne iisme
हकीक़त की लहर ने मिटा दिए आ कर मेरी कल्पना के निशाँ bahut gahrai hai baton me ,main bahar rahi is karan der ho gayi aane me magar dhyan me aapki rachna sada rahi .isi bhram me kayam sab hai .
56 comments:
बेहद मार्मिक चित्रण्……………… बहुत दर्द भरा है।
सुंदर सारगर्भित रचना ,बधाई
भावपूर्ण रचना . रचना में दर्द है
मेरे ख्यालों के निशां इस बात के गवाह हैं, तेरे दर तक हम रोज़ आते हैं
हकिक़त हमेशा ख्यालों को, कल्पनों को मिटाता है ...
सुन्दर रचना !
जो भी हो दी ! पर इन्हीं निशान के सहारे हम आप तक पहुंचे हैं :)
एक और संवेदनशील रचना.
चित्र और कविता में अच्छा सामंजस्य बिठाया.. बेजोड़ कविता और जोड़ीदार चित्र.. :)
Very touching and and painful. Really very nice.
अति सुन्दर कृति
ek baar phir pyaari rachnaa
मन के सागर को सोचों का साहिल तो मिला..
यादों की रेत पर मिले ख्यालों के निशान भी
बेशक मिटा दिए हों हकीकत की लहर ने
कल्पनाओं के निशा...मगर ये क्या कम था कि..
उस कल्पनाओं के सागर में डूबे तो सही..
बस ऐसे ही आपकी रचना को पढ़ कर कुछ शब्दों ने उथल -पुथल की...
इसमें कोई शक नहीं कि आप जो भी लिखती हैं मन का मंथन करके भावनाओं का अमृत ही होता है...और अमृत किसे नहीं अच्छा लगेगा...
बधाई सुंदर रचना के लिए.
बहुत संवेदनशील रचना।
सगर के जल से गहरे तक भींगो गई।
हकीकत और कल्पना का अच्छा टकराव प्रदर्शित करती रचना ।
अति सुन्दर ।
Bah............
सम्वेदना के स्वर has left a new comment on your post "ख्यालों के निशाँ":
मरुभूमि में मरीचिका सी ये चाहत दौड़ाती है, पर हक़ीक़त में कुछ नहीं मिलता... वैसे ही साहिल पर रेत पर क़दमों के निशानों पर रखी चाहत, लहरों की भेंट चढ़ जाती हैं... एक इत्मिनान फिर भी होता है कि चलो इसी बहाने कुछ ऐसी चाहतें भी बह गईं जिनका बह जाना ही बेहतर था... ठोस चाहतें डट कर लहरों का सामना करती हैं और हक़ीक़त से टकराकर समाप्त नहीं होतीं, ख़ुद हक़ीक़त बनती हैं..
संगीता दी, प्रकृति के प्रतीकों से सजी अचिंत्य रचना!!
गलती से यह कमेन्ट डिलीट हो गया था...क्षमा प्रार्थी हूँ
बहुत ही संवेदनशील रचना....
चित्र भी बहुत ख़ूबसूरत है..
मैं अब फ्री हो गया हूँ.... थोडा सा... अब से रेगुलरली आऊंगा... बहुत सुंदर और सारगर्भित रचना.... .
सुन्दर रचना ,गुलाम अली की की गाई एक गजल जैसे याद हो आयी हो
तेरा नाम लिखा था रेत पर...... कोई लहर आके मिटा न दे
vaqt ka dariya hame baha gya par pairo k nisha bane rhe...........
bahut sundar rachna.
wah
what a thought.............
आपकी रचनाएं मरुभूमि में मरुद्यान जैसी होती हैं... प्रकृति के प्रतीकों का बिम्बों के रूप में प्रयोग चमत्कृत करता है... हर बार यहाँ आकार तारोताजा हो जाती हूँ.
हम त दंग रह जाते हैं आपका छोटा छोटा प्रतीक देखकर... समुंदर, साहिल, लहर, रेत, पैरों का निशान, चाहत... हर सब्द अपने आप में कविता है अऊर जब आप इसको गूँथ देती हैं तब जाकर ई माला बन जाता है...आज समझ में आया है कि आपका ब्लॉग का नाम बिखरे मोती काहे है... आदमी के चाहत का बहुत सुंदर दर्सन प्रस्तुत की हैं आप, हमेसा चाहत बालू पर बना हुआ निसान के पीछे भागता है, लेकिन सचाई का लहर के साथ सब बह जाता है. बहुत सुंदर!!
अच्छा लगा पढ़ के.
ओह! बेहद भावपूर्ण..कुछ थम सा गया हो जैसे.
तेरी यादों की रेत पर
मेरे ख्यालों के निशाँ हैं
वाह..
संगीता जी
रेत पर ख्यालों की निशानदेही.
मुझसे लगता है पानी निशानदेही से गले मिलने आता है.गले मिलने वाला इतना खूबसूरत होता है कि उसे साथ ले जाता है.
आपकी कविता मेरे लिए कुछ न कुछ काम छोड़ जाती है.
फिर से कुछ सोचने लगा हूं
कभी-कभी यह भी सोचता हूं कि मैं इतना अच्छा कब लिख पाऊंगा
bhut khub alfaaz or chitr ka sngm yeh to nyaa kmaa he bdhaayi ho . akhtar khan akela kota rajsthan
बेहद भावपूर्ण .निशान छोड़ गई
अच्छी रचना के लिए बधाई।
ab samjh me hi nahi aata mumma ki comment kya kiya jaye ..heheh...aap humesha achha likhti hain ..bade makhmali prateekon ka istemal kiya hai aapne iisme
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
बेहद भावपूर्ण...
madhur rachna.........................
सचमुच लाजवाब कर दिया आपने।
................
नाग बाबा का कारनामा।
व्यायाम और सेक्स का आपसी सम्बंध?
भावपूर्ण प्रस्तुति...!!
सरल शब्दों में गहरा भाव व्यक्त करती कविता।
कितनी बेदर्दी बयां हुई है, दास्तां में...अति सुंदर!
behad samvedna bhari kavita! arthpoorn, bhavpurn A
Hi di..
Kab tak 'Sundar Bhav' kahun main..
Kaise main taareef karun..
Har kavita pahle se sundar..
Sochun main kya naya likhun..
Paso-pesh main pada hua hun..
Uha-poh main khada hua hun..
Sabne etni taareefen ki..
Alag main sabse kaise dikhun..
Bahut khoobsurat kavita hai.. Yatharth aur kalpana ka khubsurat mel.. Aur wo bhi kam shabdon main bade bhav..hamesha ki tarah..
Deepak..
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ख्यालों के निशां, क्या बात है। सचमुच लाजवाब कर दिया आपने।
................
नाग बाबा का कारनामा।
महिला खिलाड़ियों का ही क्यों होता है लिंग परीक्षण?
कोई तो बता दे
ये लहरे आती है कहाँ से ?जाती है कहाँ ?
...बहुत सुन्दर!!!
kuch lafzon ka tana-bana..aur umra bhar ka fasana....amazing...amazing !
"हकीक़त की लहर ने
मिटा दिए आ कर
मेरी कल्पना के निशाँ "
बहुत गहरे अहसास. लाजवाब !!!!!!
bahut khubshurat
वाह क्या बात कही है ....
हकीक़त की लहर ने
मिटा दिए आ कर
मेरी कल्पना के निशाँ ...
कितना सरल लेखन है आपका और कितनी कशिश जवाब नहीं लाजवाब
हकीक़त की लहर ने
मिटा दिए आ कर
मेरी कल्पना के निशाँ "
..Gahre arthpurn bhav...
gaagar mey sagar bharati kavitaa ke liye badhai. kam shabdon mey jivan-darshan .
हकीक़त की लहर ने
मिटा दिए आ कर
मेरी कल्पना के निशाँ
bahut gahrai hai baton me ,main bahar rahi is karan der ho gayi aane me magar dhyan me aapki rachna sada rahi .isi bhram me kayam sab hai .
तेरी यादों की रेत पर
मेरे ख्यालों के निशाँ हैं
vahut khoob
गहरे अहसास...
हकीक़त की लहर ने
मिटा दिए आ कर
मेरी कल्पना के निशाँ .........
बहुत सुन्दर.......
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
सुंदर और सारगर्भित रचना..
गुरु पर्व पर अनेकों शुभकामनाये....
bahut sundar lagi aapki har klavita .. charcha manch meri kavita le jaane ke liye har baar ke liye aabhaar vyakt karati hun
bahut achcha likhtin hain aap.
बहुत अच्छा लिखा है मोहतरमा .एक विचार जी में आ रहा है -मुमकिन है वक्त हर ज़ख्म को भर देता हो मगर /ज़ख्म भर भी जायें तो निशान कहाँ जाते हैं
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