सिहरन .....
>> Tuesday, 14 December 2010
रूखसार पर ढुलका
पलक का इक बाल
चुटकी से पकड़
रख दिया था
तुमने मेरी
उल्टी बंद
मुट्ठी पर
और कहा था कि
मांग लो
जो मांगना है ,
बस यह पल
यहीं ठहर जाए
यही ख़याल आया था .
और फिर तुमने
अपनी फूंक से
उड़ा दिया था उसे .
आज भी मेरी
मुट्ठी पर
तेरी फूंक की सिहरन
चस्पां है ..
84 comments:
ओह हो हो दि ! सच में सिहरन सी दौड गई....एक दम मखमल सी मुलायम प्यारी सी कविता है...जिसे बार बार पड़ने को मन करता है.
मन कर रहा है एक फूंक यहीं मार कर मैं भी कुछ मांग लूं :)
इत्ती सोणी प्यारी सी छुई मुई सी कविता . ऐसा लग रहा है जैसे लरजते होठ कुछ कहने वाले थे लेकिन फूंक ने सपने से जगाया और प्यार वाली सिहरन सी दौड़ गयी .
ग़ज़ब की नाज़ुकी कि इन पंक्तियों में !
बहुत बारीकी से मनोभावों को संजोया है।
शुभकामनाएं
awwwww......beautiffful....
kinni kamaal ki nazm hai dadi....love u
'wish' yaad hai aapko....bilkul aisi hi ek maine likhi thi ;)
आज भी मेरी
मुट्ठी पर
तेरी फूंक की सिहरन
चस्पां है .kya kahun
आज भी मेरी
मुट्ठी पर
तेरी फूंक की सिहरन
चस्पां है .
मन के भावों से लबरेज़ सुन्दर कविता
हर चीज उडती नहीं हैं, अपनी पहचान छोड़ जाती हैं... सुन्दर रचना! साधुवाद स्वीकार करें.
संगीता दी!
जितनी कोमल पलकें और उसको फूंक की सिहरन..उतनी ही कोमल नज़्म!!
बंद आँखों से महसूस करने की कोशिश कर रहा हूँ!!
ग़ज़ब!!!!!! बेहद कोमल से अहसास
बहुत प्यारी कोमल सी रचना !!
... bahut sundar ... adbhut bhaav !!!
bahut hi sundar....
बस यह पल
यहीं ठहर जाए
महसूस तो ऐसा ही होता है । लेकिन पल कभी ठहरता नहीं ।
सुन्दर कोमल अहसास ।
आज भी मेरी
मुट्ठी पर
तेरी फूंक की सिहरन
चस्पां है ..
kyaa kahne, laazabaab Sangeeta ji
कोमलतम अहसासों से सजी बहुत ही प्यारी रचना है संगीता जी ! वह फूँक तो उसी पल वातावरण में विलीन हो गयी होगी लेकिन उस फूँक का अहसास सालों बाद आज भी आपकी मुट्ठी पर कैसे और क्यों जीवंत है यही तो जादू है जिसे कोई समझ नहीं पाया ! बहुत ही सुन्दर रचना !
आज भी मेरी
मुट्ठी पर
तेरी फूंक की सिहरन
चस्पां है ..
:) खुशबू है इन शब्दों में...
बहुत सुन्दर.......... शब्दों में जान डाल दी...
कोमलता से गहरी बात कह गयीं आप।
आज भी तेरे फ़ूंक की सिहरन मुठ्ठी में चस्पा है,
ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति , बधाई।
kitni komal kavita hai.wah.
बहुत सुन्दर कबिता एक अच्छा अहसास धन्यवाद.
आज भी मेरी
मुट्ठी पर
तेरी फूंक की सिहरन
चस्पां है .
बहुत ही सुंदर..... मन को छूती पंक्तियाँ
बहुत ही सुंदर कविता जी, धन्यवाद
Yaden yaad aatee hain...... sundar rachna
आपकी पोस्ट की रचनात्मक सौम्यता को देखते हुए इसे आज के चर्चा मंमच पर सजाया गया है!
http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/369.html
संगीता जी,
बस एक लफ्ज़ कहूँगा इस पोस्ट पर.....सुभानाल्लाह......बहुत खूब|
वाह क्या अहसास है? ऐसी रूमानियत की कल्पना के क्या कहने?
नाज़ुक भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति.
mumma....aap bhi gulzaarish ho gayeen hain ... hehehe ...bahut sundar nazm hui hai...
kya baat hai masi.. Inni sweet si nazm hai.. Kya image pakdi hai.. Beautiful
आज भी मेरी
मुट्ठी पर
तेरी फूंक की सिहरन
चस्पां है ..
बडी ही खूबसूरती से अहसासों को पिरोया है………ख्याल बहुत ही उम्दा है दिल मे उतर गया।
भावमय करते यह शब्द ....हमेशा की तरह अनुपम प्रस्तुति ।
आज भी मेरी
मुट्ठी पर
तेरी फूंक की सिहरन
चस्पां है ..
kya baat he Di,
behad khoobsurat , dil ke pass
कितनी बारीकी से जिया है वो पल और उससे अधिक शिद्दत से उसको शब्दों में ढाल दिया. क्या बात है?
कोमल अहसास की सुंदरभिव्यक्ति।
bas is rachna ko padh kar us ehsaas ki kalpana kar rahi hun.
kayi ehsaas kaise hote hain...jo bas man ki divaron se chipak kar rah jate hain....sunder rachna.
ओह...लाजवाब !!!
और क्या कहूँ???
:) प्यारे से अलफ़ाज़ में ढले प्यारे अहसास
ओह! बहुत कोमल!!
संगीता जी....... बहुत ही प्यारे एहसाहह भरे है कविता में... दिल को छू लिए..
कोमल एहसासों को शब्द मिले हैं !!!
sangeeta di
ek khoobsurat ehsas se man ko bhr gai aapki pyaari si kavita.
मुट्ठी पर
और कहा था कि
मांग लो
जो मांगना है ,
बस यह पल
यहीं ठहर जाए
यही ख़याल आया था .
aaj bhi kabhi kabhiaisa hota jab ham bachcho ki tarah jhat kahte hain mang li jo mangoge vo mil jayega.
behad pasand aai aapki yah post.
poonam
आज भी मेरी
मुट्ठी पर
तेरी फूंक की सिहरन
चस्पां है ..
bhut sundar....
फूंक की सिहरन चस्पां है.... बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई .
प्यार भरा अहसास है.... वह पल यूँ ही ठहर जायें, यही सब मांगते
काश ऐसे माँगने से वो सब मिल जाएँ, हमें तो सुकून जरूर मिलता था जब कभी ये किया करते थे.
मन को छू गयी ये कोमल से अहसास वाली कविता
मांग लो
जो मांगना है ,
बस यह पल
यहीं ठहर जाए
यही ख़याल आया था कितनी सुंदर कल्पना!...बहुत ही सुंदर शब्दों का संगम!
उस फ़ूंक की सिहरन
बस यह पल
वाकयी चस्पां हो गयी
बधायी !
भावपूर्ण लेखन के लिए बधाई।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
awesome..........
जीवन में सभी के साथ घटे एक साधारण खेल को इतने भावपूर्ण कोमल शब्दों में अहसास कराना वास्तव में आप की काव्यक्षमता को दर्शाता है..आभार
आज भी मेरी
मुट्ठी पर
तेरी फूंक की सिहरन
चस्पां है ..
उस फूंक की सिहरन को स्थायी हो जाने की अनुमति तो मिलनी ही चाहिये .. शायद ऐसे ही कुछ पल और अनुभूतियाँ ही तो जीवन के आधार होते हैं.
लाजवाब और अत्यंत नाजुक सी रचना.
lajwaab prastuti....ek ek shabd apne aapko byaan kar rahen hain
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
मर्मस्पर्शी पोस्ट। मन को आंदोलित कर गया।मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
bahut bhavpooran .....
बेहद खूबसूरत नज़्म.
सुंदर मनोभावों की सशक्त अभिव्यक्ति.
उफ़ ... बस निःशब्द हूँ ... महसोस कर रहा हूँ ..
pyaar ka ehsaas hamesha saath hota hai, bilkul is foonk ki tarah...
संवेदनशील रचना ।
वाह संगीता जी,
"आज भी मेरी
मुट्ठी पर
तेरी फूंक की सिहरन
चस्पां है .."
पढ़ते हुए अहसास की सिहरन जैसे नस नस में दौड़ जाती है !
शब्द जैसे अर्थ के सीमा को पार कर गए हैं !
इतनी गहन अभिव्यक्क्ति !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
bahut sundar rachna...
ek khoobsoorat sa ahsaas...
Sundar rachna, ek khoobsoorat sa ehsaas
very nice...
mere blog par bhi kabhi aaiye
Lyrics Mantra
वाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने ...
भावपूर्ण सुन्दर रचना।
बस यह पल
यहीं ठहर जाए
यही ख़याल आया था .
bahot khoobsurat khyaal hai...
बहुत खूब...क्या कहने इस रचना के...
सिहरन के साथ पल का ठहरना ... मन को छू गया ..आपको बधाई
ह्म्म्म... बहुत ही प्यारी रचना...
न जाने कितनी बार अपलक पढ़ गई...
अन्दर तक उतर गई...
I can just say "Great"!
बहुत सुंदर!!यही फूंक की सिहरन का एहसास ही तो जिंदगी है.हम हर एहसास को इसी शिद्दत से महसूस करे तो क्या बात है!! फिर सामने कोई हो या न हो!!
"आज भी तेरे फ़ूंक की सिहरन मुठ्ठी में चस्पा है"|
बहुत ही बढियाँ चित्रण|खूबसूरत और कोमल रचना है|
शुभकामनाएं,
मानस खत्री
ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
फूंक की इतनी व्यापक और गहरी वाख्या मन को झंकृत कर देती है. कविता अंत में इतनी तीव्र उडान भरती है कि मन बावरा हो जाता है, अपने किसी ऐसे ही नाजुक खयालों से लिपट.
वाह !! क्या कमाल लिखा संगीता जी .. बचपन याद दिला दिया .. सादर
bahot sundar...sajiw prastuti...
इस नाजुक कविता के बाद एक हकीकत बयानी यहां http://rajey.blogspot.com/ देखें।
It touched my heart !
It has touched my heart !
आज भी मेरी
मुट्ठी पर
तेरी फूंक की सिहरन
चस्पां है .
सुन्दर अभिव्यक्ति् धन्यवाद
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