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धुंधली लकीरें ...

>> Monday, 6 December 2010




लोग कहते हैं कि 

हथेली की लकीरों में 
किस्मत लिखी होती है . 
मेरी किस्मत भी 
स्याह स्याही से लिखी थी . 
फिर भी लकीरें 
धुंधली हो गयीं . 
और अब 
मेरी किस्मत 
कोई पढ़ नही पाता . 
धुंधली होती लकीरें 
एक जलन का 
एहसास कराती हैं 
और मुझे 
तन्हाई में ले जाती हैं 
जहाँ मैं खुद ही , 
खुद को नही पढ़ पाती हूँ. 



82 comments:

shikha varshney Mon Dec 06, 04:04:00 pm  

हाथों की लकीरें वह पढते हैं जिन्हें अपने आप पर भरोसा नहीं होता .
आप उन्हें पढ़ना छोडिये और कविता लिखिए :)
भावपूर्ण अभिव्यक्ति :)

Kunwar Kusumesh Mon Dec 06, 04:17:00 pm  

आपकी योग्यता किस्मत की बेहतरीन लकीरों को जन्म देने वाली है.पिछली लकीरें आपके आगे नतमस्तक होकर पतली गली से निकल लेने में ही अपनी भलाई समझ रही हैं.
मेरी नई पोस्ट देखने की कृपा करें.

vandana gupta Mon Dec 06, 04:19:00 pm  

आज तो बहुत मार्मिक चित्रण कर दिया…………

खुद पर भरोसा करने वालों की तो
हाथ की लकीरें भी बदल जाती हैं

ब्लॉ.ललित शर्मा Mon Dec 06, 04:25:00 pm  

किस्मत के सितारे उनके भी चमकते हैं जिनके हाथ ही नहीं होते।
जरुरत है उपरवाले की एक सीधी नजर की।

मनोज कुमार Mon Dec 06, 04:41:00 pm  

कुछ लोग इन लकीरों को न पढते हैं न पढवाते है।
कुछ गढते हैं।
कुछ लकीरों के भरोसे बैठे रहते हैं।
और कवि/कवयित्री ... (यानी आप भी) ... तो जहां से शुरु कर दे लकीर वहीं से बन जाती है, तभी तो कहते हैं जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि।
कविता .... कैसी लगी /// ?
सच कह दूं ....?

sonal Mon Dec 06, 04:42:00 pm  

itna dard kyon....man chhune wali rachna

रेखा श्रीवास्तव Mon Dec 06, 04:44:00 pm  

हाथ की लकीरे लिखता है ईश्वर ऐसा कहा जाता है, अपने हाथों से खीच लें तो उन्हें कोई मिटा नहीं सकता है. बस हौसलों में बुलंदी हो और नजर अपने लक्ष्य पर हो.

केवल राम Mon Dec 06, 04:57:00 pm  

धुंधली होती लकीरें
एक जलन का
एहसास कराती हैं
और मुझे
तन्हाई में ले जाती हैं
जहाँ मैं खुद ही ,
खुद को नही पढ़ पाती हूँ.
xxxxxx
अंत में जाकर ऐसा लगता है , कि कविता रहस्यवाद में परिवर्तित हो जाती है ....तभी तो व्यक्ति को तन्हाई का एहसास होता है ....और व्यक्ति खुद को नहीं पढ़ा पाता ...बस महसूस करता है ...आनंद को .....शुक्रिया

अजित गुप्ता का कोना Mon Dec 06, 05:08:00 pm  

किसी की किस्‍मत वैसे भी ना स्‍वयं और ना कोई पढ़ नहीं पाता, ये लकीरे तो भ्रम पैदा करती हैं। कुछ कर गुजरने का जज्‍बा हो तो लकीरे तो अपने आप प्रखर होकर बोलने लगती हैं। आपकी लकीरे और उनकी स्‍याही बहुत स्‍पष्‍ट दिख रही है आपकी कृतियों में। ये खूब चमकेगी, विश्‍वास रखिए।

अरुण चन्द्र रॉय Mon Dec 06, 05:09:00 pm  

आपकी छोटी कवितायें विस्मित कर देती हैं.. सुन्दर कविता..

ashish Mon Dec 06, 05:11:00 pm  

चंद लकीरों का धुन्धलाना कर्म वीरो के कर्मठता पर कोई असर नहीं छोड़ती . आप यू ही लिखती रहे. और कर्मठता की लम्बी सी लकीर खिचती रहे .

mridula pradhan Mon Dec 06, 05:49:00 pm  

ekdam bhawbhini kavit.bahut achchi lagi.

Udan Tashtari Mon Dec 06, 06:01:00 pm  

बहुत गहन अभिव्यक्ति!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' Mon Dec 06, 06:04:00 pm  

बहुत सुन्दर रचना!
आपकी सोच की उड़ान बहुत ऊँची है!
--
हमारी भी लकीरे धुँधली पड़ने लगी हैं!
--
चश्में से ही देख पाते हैं!
--
अब तो अगले जन्म में ही नई लकीरे मिल पायेंगी!

दिपाली "आब" Mon Dec 06, 06:35:00 pm  

waah.. Shaandaar kavita masi.. Love u

Anonymous Mon Dec 06, 06:44:00 pm  

माफ़ कीजियेगा संगीता जी ..
चिट्ठाजगत की बस खराब होने के कारण देर हो गयी....
ये लकीरें धुंधली कैसे हो गयी ?? शायद घने कोहरे के कारण परेशानी हो रही है, उम्मीद है जल्द ही ये कोहरा छटेगा, और ये लकीरें फिर से सभी पढ़ सकेंगे...
हिंदी साहित्य के एक महान कवि ...

अनुपमा पाठक Mon Dec 06, 07:00:00 pm  

लकीरों का क्या...
ये तो रहस्यमयी हैं!
सुन्दर रचना!

लोकेन्द्र सिंह Mon Dec 06, 07:06:00 pm  

आपकी कवितायेँ ही आपकी हाथों की लकीरें है.... सच मानिये... आपकी कवितायेँ हमेशा कुछ नए नए संदेस दे जाती है.....

Kailash Sharma Mon Dec 06, 07:34:00 pm  

धुंधली होती लकीरें
एक जलन का
एहसास कराती हैं
और मुझे
तन्हाई में ले जाती हैं
जहाँ मैं खुद ही ,
खुद को नही पढ़ पाती हूँ.

बहुत ही भाव और चिंतन से परिपूर्ण अभिव्यक्ति..लकीरों का क्या, इनको कौन पढ़ पाया है? आपके कर्म ही आपके हाथ में नयी लकीरें बना रहे हैं जिन्हें आप ही नहीं सब पढ़ पा रहे हैं. आभार

sheetal Mon Dec 06, 07:54:00 pm  

nirasha ke saaye se kar ke khud ko dur,
us asha bhari kirno se dekhiye apni htheli ki aur.
hoti dhundli lakire fir ummedo ki syaahi se hogi gehri bharpur.
fir kabhi na fatkegi tanhai aapki aur.
bahut acchi abhivyakti.aapki har rachna dil ko chuti hain.

डॉ टी एस दराल Mon Dec 06, 08:01:00 pm  

हमारा तो मानना है कि हाथ की लकीरें अपने कर्मों से बनती हैं ।

ताऊ रामपुरिया Mon Dec 06, 08:06:00 pm  

अति गूढतम रचना.

रामराम.

अनामिका की सदायें ...... Mon Dec 06, 08:32:00 pm  

वो एक कहावत है न अंग्रेजी की NO NEWS IS THE BEST NEWS ...तो अच्छा ही है ना की किस्मत की लकीरों को नहीं पढ़ा जाता...:)

और लकीरें जैसी भी थी या हो गयी हैं...आपकी कीर्ति को बढ़ा रही हैं...मार्ग प्रशस्त कर रही हैं...तो फिर सोचना कैसा ??

मन की उहा-पोह को दर्शाती सुंदर कविता.

Deepak Saini Mon Dec 06, 08:39:00 pm  

सुन्दर अभिव्यक्ति
छोटी कविता बहुत कुछ कह गयी

मनोज कुमार Mon Dec 06, 08:49:00 pm  

इस कविता में लकीरों के ज़रिए ख़ुद को तरीक़े से पहचानने की कोशिश नज़र आती है। अगर यह हो जाए तो ‘उससे’ साक्षात्कार हो जाता है, और इस पथ के लोग हाथों की लकीरों पर क्या निर्भर करेगा?

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι Mon Dec 06, 09:02:00 pm  

जब मैं ख़ुद ही ख़ुद को देख नहीं पाती।

सुन्दर तरीके से पिरोयी गई दर्द भरी अभिव्यक्ति।

कडुवासच Mon Dec 06, 09:16:00 pm  

... behad khoobsoorat rachanaa !!!

Sadhana Vaid Mon Dec 06, 09:16:00 pm  

यह रचना आपके व्यक्तित्व और आपकी उस सोच से अलग हट कर है जैसी कि आपकी छवि मेरे मन में आपकी रचनाओं को पढ़ कर बनी है ! निराशा का यह स्वर कदाचित आपको सूट नहीं करता ! तथापि रचना बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी है ! बधाई स्वीकार करें !

JAGDISH BALI Mon Dec 06, 09:56:00 pm  

बहुत सुन्दर और रुहानी पंक्तियां ! आप ने फ़ोलो नहीं किया मेर ब्लोग ! कृप्या करें !

स्वप्निल तिवारी Mon Dec 06, 10:20:00 pm  

mere ko samjh nahi aa raha hai kya bolna... bahut udaas si nazm hai ...

प्रवीण पाण्डेय Mon Dec 06, 10:30:00 pm  

मन की घुड़मुड़ाहट शब्दों में व्यक्त करने की सफलता।

रचना दीक्षित Mon Dec 06, 10:39:00 pm  

मार्मिक चित्रण, दर्द भरी अभिव्यक्ति।

DR.ASHOK KUMAR Mon Dec 06, 11:16:00 pm  

संगीता दी ,

आप अपने हाथोँ को सही से निहारिये तो सही , आपके हाथोँ की रेखाएँ तो बहुत सुन्दर हैँ।

>> आपकी मस्तिष्क रेखा के शुरु मेँ ही एक branch निकल करके गुरू क्षेत्र की तरफ जा रही है तथा brain line का अंत चन्द्र क्षेत्री है ।

>> सूर्य रेखा अति सुन्दर है।

>> ये देखिये venus mount कितनी गुलाबी आभा लिये हुए है। आप बहुत रहस्यमयी हैँ ।
सब कुछ तो स्पष्ट है।

इस सबके वाबजूद आपकी कविता रहस्य बना रही है। बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है । सादर आभार।

सूबेदार Mon Dec 06, 11:23:00 pm  

बहुत सुन्दर भावपूर्ण व अर्थपूर्ण कबिता वैसे बहुत परिश्रम करती है आप .बहुत-अभूत धन्यवाद.

सूबेदार Mon Dec 06, 11:23:00 pm  

बहुत सुन्दर भावपूर्ण व अर्थपूर्ण कबिता वैसे बहुत परिश्रम करती है आप .बहुत-अभूत धन्यवाद.

rashmi ravija Mon Dec 06, 11:43:00 pm  

बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना....पर जज्बा हो तो लकीरें भी बदल जाती हैं...

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) Mon Dec 06, 11:54:00 pm  

अंतिम पंकितयां बेहद अच्छी लगी.

सम्वेदना के स्वर Tue Dec 07, 12:55:00 am  

संगीता दी! इस देश में तो हथेली की लकीरें चाकू से बना लेने वाले पैदा हुए हैं!!

Rohit Singh Tue Dec 07, 04:23:00 am  

अच्छा ही है कि हाथों की लकीर को अब हमारे कोई नहीं पढ़ सकता। ये लकीरें कभी कभी जिंदगी में कई तरह के उतार चढ़ाव का संकेत देती हैं तो कई बार तंग कर देती है। बेहतर है न ही पढ़ी जाएं। अपने को पढ़ने के लिए हाथ की लकीरें क्या पढ़ं बस जरा सा अपने अंदर ही झांक लूं। पर मन तो इतना चंचल है पापी है कि अंदर झांकने से भी डरता है। ऐसे में लकीर से हट कर अपनी खींची हुई लकीर पर चलने की कोशिश क्यों न की जाए।

रश्मि प्रभा... Tue Dec 07, 07:57:00 am  

in haathon mein ab lakiren dikhti kahan hain ... jo hai aapki kalam me hai , jise dekh un lakiron per hum chalne lage hain

Anonymous Tue Dec 07, 09:24:00 am  

oh dadi....kitni acchi nazm hi....udaas si, komal si....beautiful :)
par itni sad kyun....? chalo aapke liye....a bag ful of smiles
:):):):):):):):):):):):):):):):):)

Suman Tue Dec 07, 10:37:00 am  

sangita ji kya kahun aapki rachnaye badi marmik hoti hai.sahaj hi dil ke gaharai ko chhu jati hai..........

सदा Tue Dec 07, 01:27:00 pm  

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द भावमय करती रचना ।

निर्मला कपिला Tue Dec 07, 01:29:00 pm  

जहाँ मैं खुद ही ,
खुद को नही पढ़ पाती हूँ.
खुद को पढना बहुत कठिन है संगीता जी। हम केवल दूसरों को पढने मे ही मग्न रहते हैं। अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।

Dr Varsha Singh Tue Dec 07, 02:38:00 pm  

हाथों की लकीरें.....मुझे तन्हाई में ले जाती हैं जहाँ मैं खुद ही ,खुद को नही पढ़ पाती हूँ.
कविता बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है। बधाई।

दिगम्बर नासवा Tue Dec 07, 03:13:00 pm  

भविष्य जब अन्धकार में दूप जाता है ... जीवन खोखला होने लगता है ...
गहरी अनुभूति से प्रेरित रचना .

उपेन्द्र नाथ Tue Dec 07, 04:21:00 pm  

संगीता जी,
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण कविता..

sheetal Tue Dec 07, 07:20:00 pm  

aapka bahut shukriya ki aap aayi aur meri rachna par aapne apni pratikriya vyakt ki.
mera ek aur blog bhi hain kabhi waqt mile to aap yaha bhi aaye.
http:kisseaurkahaniyonkiduniyaa.blogspot.com

अंजना Tue Dec 07, 10:08:00 pm  

सुंदर और भावपूर्ण कविता.

वीना श्रीवास्तव Tue Dec 07, 10:10:00 pm  

लकीरें कर्म से बड़ी नहीं हैं। कर्म और इच्छा शक्ति मजबूत हो तो व्यक्ति क्या नहीं कर सकता....बस अपना कर्म करते रहिए.....सुदंर रचना

विनोद कुमार पांडेय Tue Dec 07, 10:33:00 pm  

एक भावपूर्ण प्रस्तुति....बधाई

ZEAL Wed Dec 08, 01:05:00 pm  

.

"Where there is will, there is a way
"
Beautiful creation.

.

डॉ. मोनिका शर्मा Wed Dec 08, 01:07:00 pm  

भावपूर्ण अभिव्यक्ति ....

Anonymous Wed Dec 08, 03:20:00 pm  

संगीता जी,

बहुत खुबसूरत......वाह....कितने कम और सरल शब्दों में आपने कितनी गहरी बात कह दी है.....

किसी शेर की एक लाइन याद आ गयी है...

किस्मत तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते

mukti Wed Dec 08, 06:07:00 pm  

लकीरें, चाहे हाथ की हों या कहीं और की...धुंधली हों तो पढ़ना मुश्किल हो ही जाता है... पर अगर उजाला सही हो तो धुंधली लकीरें भी नज़र आ जाती हैं.
बहुत प्यारी पोस्ट है.

Satish Saxena Wed Dec 08, 07:42:00 pm  

मानव मन की वेदना की बेहतरीन अभिव्यक्ति ! शुभकामनायें आपको संगीता जी !

POOJA... Wed Dec 08, 07:47:00 pm  

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ...
मैं भी अपनी रेखाओं को देखने, सहलाने लगी हूँ...

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) Thu Dec 09, 06:36:00 am  

photo mein itni pyari muskan aur kavitaon mein itna dard! kash yeh kavitaaen is dard ki dawa ban jaaen! saadar

Akshitaa (Pakhi) Thu Dec 09, 05:12:00 pm  

बहुत सुन्दर लिखा आपने..बधाई.

'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.

Minoo Bhagia Fri Dec 10, 08:21:00 am  

sab kavitayein bahut sunder hain sangeeta ji , aapko padha hai maine 'knol ' par

Minoo Bhagia Fri Dec 10, 08:21:00 am  

sab kavitayein bahut sunder hain sangeeta ji , aapko padha hai maine 'knol ' par

कविता रावत Fri Dec 10, 05:28:00 pm  

मेरी किस्मत
कोई पढ़ नही पाता .
धुंधली होती लकीरें
एक जलन का
एहसास कराती हैं
और मुझे
तन्हाई में ले जाती हैं
जहाँ मैं खुद ही ,
खुद को नही पढ़ पाती हूँ.

गहरे दुखियारे धुंध में सच दुःख बहुत गहराता है ...
बहुत अच्छी रचना लगी

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" Sat Dec 11, 08:22:00 am  

रचना बहुत सुन्दर है ! आभार !

अशोक लालवानी Sat Dec 11, 11:44:00 am  

sach hai magar kaha hai lakiren aur lakiron pe saji zindagi?

talash karta rha insan aur ap tab bhatak rha insan...


rachna achchhi lagi...

ज्ञानचंद मर्मज्ञ Sat Dec 11, 04:35:00 pm  

संगीता जी,
`धुंधली होती लकीरें जलन का अहसास कराती हैं ....तन्हाई में ले जाती हैं जहाँ मैं खुद ही खुद को नहीं पढ़ पाती !`
पढ़ कर ऐसा लगा जैसे अंतर्मन में छुपी वेदना को आपने शब्द दे दिये हैं !
मन को छूते भाव मन को उद्वेलित कर गए !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

Anupam Karn Sun Dec 12, 04:59:00 pm  

स्याह सी होती ये लकीरें ,
वाकई धुंधली ही होती है
वरना किस्मत नही होती,
होती गणित-विज्ञान की तरह

जिसमे लकीरों को परखने का
अहसास कहीं और खो गया होता !

सुन्दर अहसास !

कुमार राधारमण Sun Dec 12, 10:11:00 pm  

हाथ की लकीरें कर्मों से बदलती रहती हैं। इसलिए,कुंडली विशेषज्ञ हस्तरेखा को ज़्यादा महत्वपूर्ण न मानकर,बस पूरक मानते हैं। मैं कह सकता हूँ कि आपने अपने हाथ में स्वयं नई रेखा खींची है। इसे तो कोई और ही पढ़ सकता है। मृग को स्वयं की कस्तूरी का भान भला कब हुआ है!

rafat Mon Dec 13, 01:19:00 pm  

सच्चा और गहरा तल्स्मी अहसास है रचना में कौन पढ़ पाया है अपनी रेखा और जो धुंदली हो तो क्या पढ़े कोई

Urmi Mon Dec 13, 04:03:00 pm  

दिल को छू लेने वाली रचना! बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने!

संतोष त्रिवेदी Mon Dec 13, 08:19:00 pm  

हाथ की लकीरें हमारे पढने के लिए नहीं ज्योतिषियों के लिए होती हैं !
फिर भी साधुवाद !

adil farsi Mon Dec 13, 09:47:00 pm  

सुन्दर अभिव्यक्ति

धीरेन्द्र सिंह Tue Dec 14, 02:23:00 pm  

धुंधली होती लकीरें
एक जलन का
एहसास कराती हैं
और मुझे
तन्हाई में ले जाती हैं
जहाँ मैं खुद ही ,
खुद को नही पढ़ पाती हूँ.

यथार्थ पर घूमती एक सुंदर भावाभिव्यक्ति।

Govind Salota Tue Dec 14, 02:57:00 pm  

dhanyawaad ki aapne mere aagrah par mere blog par nazar daali.

aur mane word verification hata diya hai.
thanx.

May God Bless u

daanish Tue Dec 14, 04:57:00 pm  

हाथों की लकीरें धुंदली हुईं तो क्या हुआ
आप का कामयाब अक्स आपकी तहरीरों
में खुद चमक रहा है
काव्य कृति अच्छी बन पडी है
आपके द्वारा रचा गया पात्र
पाठकों से बातें कर पाने में कामयाब रहा .

डॉ० डंडा लखनवी Fri Dec 17, 11:53:00 am  

आपकी इस रचना को पढ़ कर
अपनी एक गजल का मतला
याद आ गया।
========================
सदा इल्म की सरपरस्ती में चलिए।
हथेली की अपनी इबारत बदलिए॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

M VERMA Fri Dec 17, 07:54:00 pm  

खुद को पढ़ पाना शायद सबसे दुश्कर है. मन की हजार परतें हैं एक को पढो तो ....
बेहतरीन भाव और सूक्ष्मता लिये हुए रचना

Amrita Tanmay Thu Dec 23, 08:22:00 pm  

सुन्दर रचना ..कोमल भाव से उद्वेलित करती हुई ..

रचना Thu Aug 18, 02:55:00 pm  

master piece
excellent composition

रफ़्तार

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