खलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है , हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती है
बिना काजल के हैं कजरारी आँखें
पैनी धार सी हैं ये कटारी आँखें
वार तो नहीं किया तूने मुझ पर
क़त्ल कर गयीं ये तेरी प्यारी आँखें
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6 comments:
sach likha aapane kai var jo kaam juba nahee kar patee vo aankhe kar jatee hai.acchee rachana
बेहतरीन। बधाई। एक गाना याद आ दया इसे पढ़कर ....इस जहां की नहीं है तुम्हारी आंखें...
hehhee............Mumma Aunty....zabardast teekhi rachna hai........
ek sher yaad aaya...toota foota.......
''qatl karte hain aur haath mein talwar nahin''
:)
aapki dheer gambheer anubhavi kalam se aise halke fulke creations bahut sone lagte hain...hehehe....
love you....... :)
हो के खामोश भी कुछ कहती हैं
कभी भी ना ये चुप सी रहती है
खुशी हो, गम हो या फिर बेबसी हो
सारी लहरें ये आंखें सहती हैं
वाह वाह क्या खूब कहा है शुभकामनायें
अब ऐसे कोई देखेगा तो कतल होने से कौन बच सकता है.
आप ने तो अपने शब्दों को भी तलवार की तरह ही उपयोग कर के लिखी है ये खूबसूरत रचना
बहुत बधाई
आशु
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