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ऑंखें

>> Monday, 14 December 2009

बिना काजल के हैं कजरारी आँखें

पैनी धार सी हैं ये कटारी आँखें

वार तो नहीं किया तूने मुझ पर

क़त्ल कर गयीं ये तेरी प्यारी आँखें

6 comments:

Apanatva Mon Dec 14, 07:29:00 pm  

sach likha aapane kai var jo kaam juba nahee kar patee vo aankhe kar jatee hai.acchee rachana

मनोज कुमार Mon Dec 14, 09:28:00 pm  

बेहतरीन। बधाई। एक गाना याद आ दया इसे पढ़कर ....इस जहां की नहीं है तुम्हारी आंखें...

Taru Mon Dec 14, 10:40:00 pm  

hehhee............Mumma Aunty....zabardast teekhi rachna hai........

ek sher yaad aaya...toota foota.......

''qatl karte hain aur haath mein talwar nahin''

:)
aapki dheer gambheer anubhavi kalam se aise halke fulke creations bahut sone lagte hain...hehehe....



love you....... :)

Rajeysha Thu Dec 17, 02:52:00 pm  

हो के खामोश भी कुछ कहती हैं

कभी भी ना ये चुप सी रहती है
खुशी हो, गम हो या फि‍र बेबसी हो
सारी लहरें ये आंखें सहती हैं

निर्मला कपिला Thu Dec 17, 07:01:00 pm  

वाह वाह क्या खूब कहा है शुभकामनायें

आशु Sun Dec 20, 09:45:00 am  

अब ऐसे कोई देखेगा तो कतल होने से कौन बच सकता है.
आप ने तो अपने शब्दों को भी तलवार की तरह ही उपयोग कर के लिखी है ये खूबसूरत रचना

बहुत बधाई

आशु

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