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महताब

>> Saturday, 19 December 2009

आँखों में बसाया है तुमको मैंने एक ख्वाब की तरह
दिल में छुपाया है तुमको मैंने एक चिराग की तरह
नज़र ना लग जाये मेरी मुहब्बत को ज़माने की
मेरे आसमां में चमको तुम बन के महताब की तरह .

14 comments:

Pramod Kumar Kush 'tanha' Sat Dec 19, 03:16:00 pm  

aapki rachnaye.n pasand aatii hein...

aapke liye bas itna hi...
"आसमां में चमको तुम बन के महताब की तरह"

सदा Sat Dec 19, 03:43:00 pm  

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

Apanatva Sat Dec 19, 09:30:00 pm  

dil se likhee dil kee baat .

अनामिका की सदायें ...... Sun Dec 20, 12:13:00 am  

mujhe ye mera sa nahi lagta.kyuki aajkal milavat ka jamana hai na...ha.ha.ha...nahi samjhi????
socho socho socho...fir bataungi...
byeeeeeeeeeeee

Ashish (Ashu) Sun Dec 20, 09:30:00 pm  

वाऊ, रियली तुस्सी ग्रेट हो, इतनी धासू शायरी..तुस्सी ग्रेट हो

कडुवासच Mon Dec 21, 10:39:00 pm  

... प्रसंशनीय !!!!

स्वप्न मञ्जूषा Wed Dec 23, 07:07:00 pm  

बहुत ही अच्छी लगी आपकी शायरी ...

और लगे हाथों आपके दर्शन भी हो गए...

बहुत ख़ुशी हुई आपको देख कर...

निर्मला कपिला Mon Dec 28, 09:28:00 am  

वाह क्या लाजवाब शायरी है बधाई नये साल की शुभकामनायें

daanish Thu Dec 31, 10:14:00 pm  

कम शब्दों में
मन के हर एहसास की हाज़री
अच्छी रचना . . .

रचना दीक्षित Fri Jan 01, 09:06:00 pm  

संगीता जी इस पेज की आपकी सभी रचनाएँ पढ़ीं अच्छी लगीं बहुत सुंदर अहसास है ये प्रेम और आपने उसे एक नई दिशा और नया अहसास दिया है बधाई

dweepanter Sat Jan 02, 01:48:00 pm  

बहुत ही सुंदर रचना है। नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ ब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।

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