कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
14 comments:
aapki rachnaye.n pasand aatii hein...
aapke liye bas itna hi...
"आसमां में चमको तुम बन के महताब की तरह"
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
dil se likhee dil kee baat .
mujhe ye mera sa nahi lagta.kyuki aajkal milavat ka jamana hai na...ha.ha.ha...nahi samjhi????
socho socho socho...fir bataungi...
byeeeeeeeeeeee
वाऊ, रियली तुस्सी ग्रेट हो, इतनी धासू शायरी..तुस्सी ग्रेट हो
... प्रसंशनीय !!!!
बहुत ही अच्छी लगी आपकी शायरी ...
और लगे हाथों आपके दर्शन भी हो गए...
बहुत ख़ुशी हुई आपको देख कर...
Ati sundar.
--------
अंग्रेज़ी का तिलिस्म तोड़ने की माया।
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?
वाह क्या लाजवाब शायरी है बधाई नये साल की शुभकामनायें
कम शब्दों में
मन के हर एहसास की हाज़री
अच्छी रचना . . .
संगीता जी इस पेज की आपकी सभी रचनाएँ पढ़ीं अच्छी लगीं बहुत सुंदर अहसास है ये प्रेम और आपने उसे एक नई दिशा और नया अहसास दिया है बधाई
बहुत ही सुंदर रचना है। नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ ब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।
bahut pyaari shayeri.
bhut hi mnbhavan he.
Post a Comment