कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
5 comments:
ओये तेरी................ क्या वाकई.? कितने गहरे भाव समेटे हैं ये चाँद पंक्तियाँ...बहुत सुंदर.
"आपने तो गागर में सागर भर दिया!"
--
ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, कोहरे में भोर हुई!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", मिलत, खिलत, लजियात ... ... .
संपादक : सरस पायस
वाह. बहूत खूबसूरत .
hatheliyo se sehla kar ankho k sare moti samaitne ka shabdo ka prayog bahut acchha aur naya laga.
हथेलियों ने
सहला दिया था
आँखों को
और समेट लिए थे
सारे मोती
हथेलियों ने
वाह !!!!! क्या क्या कह दिया.
Post a Comment